Tourist Family' Movie Review: भावनाओं और समर्पण की एकरूपता दिखाती "टूरिस्ट फ़ैमिली"



एमपी नाउ डेस्क


Tourist Family' Movie Review: सातवी शताब्दी में जब इस्लामी आक्रांताओँ ने पारसी समुदाय को उनकी धरती से भागने में मजबुर कर दिया तो वह अपना नया ठिकाना तलाशने के लिये भारत के गुजरात राज्य के समुद्री तट में पहुचें तो उन्हें वह के तत्कालीन राजा नें प्रवेश करने से रोक दिया और उन्हें कहा कि इस इलाकें में तो वैसे भी हमारे लोगों के रहने के लिये बडी मुश्किल से जगह है आप लोगों को हम किस प्रकार जगह दे पायेगें। 

इस घटना का एक बहुत ही मशहुर किस्सा यह है कि भारत हमेशा से ही अपने यहॉ आये मेहमानों की आवभगत करने के लिये जाना जाता रहा है, और जब पारसी समुदाय के शरणार्थीयों ने भारत में शरण देने की विनती की तो राजा ने उन्हें दुध से भरे हुये पात्र देते हुये जगह न होने का सन्देश दिया तो उसी दुध से भरे पात्र में पारसी समुदाय की ओर से शक्कर घोल कर वापिस राजा के पास दे दिया गया। 

राजा पारसियों के इस व्यवहार से काफी प्रसन्न हुआ पारसियों का राजा को सन्देश था कि जिस प्रकार दुध से भरे पात्र में शक्कर के मिश्रण से दुध का प्रभाव बढ़ गया है ठीक इसी प्रकार वह उनके प्रांत में रहकर उनके प्रांत का प्रभाव बढ़ाएंगे हुआ भी ठीक वैसे ही पारसी समुदाय ने भारत में शरण लेने के बाद इस प्रकार से इस जगह और यह के लोगों को अपना बना लिया कि अब कभी ऐसा महसूस नही होता कि यह कहीं बहार से आयें लोग थे, इस घटना में जो एक सबसे बड़ा कालक्रम था वह भावनाओं और समर्पण का था। 


ऐसी ही भावनाओं प्यार समर्पण को नये सिरें से तमिल फिल्म के निर्देशक और लेखक अभिशन जीविंथ ने अपनी फिल्म ‘टुरिस्ट फैमिली' के माध्यम से दर्शकों के सम्मुख पेश किया है। बस इस फिल्म की कहानी में शरणार्थी बदल गये है। फिल्म में भारत में शरण लेने जो पहुंचते है वह श्रीलंका की एक फैमिली है, जो श्रीलंका में एक बड़े आर्थिक संकट के बाद एक सुरक्षित जगह की तलाश में भारत में समुद्र के रास्ते अवैध तरीके से आ पहुंचते है। जैसे ही वह भारत की जमीन में पैर रखते है उन्हें पुलिस के द्वारा पकड़ लिया जाता है इस दौरान उनकी मासुमियत उन पुलिसवालों में से एक पुलिसवाले को प्रभावित करती है और वह उन्हें जाने देता है।

लेकिन कहते है न संकट में व्यक्ति कुछ ऐसा कर जाता है जो उसे नहीं करना चाहिये मुल्ली (कमलेश) जो इस फैमिली का छोटा बेटा है उसका बोला गया एक झुठ आगे जाकर उनके लिये मुसीबतें खड़ी कर देता है क्योंकि तमिलनाडु में जिस जगह वह फैमिली रह रही है, वह एक बम धमाका हो जाता है।

पुलिसवालों का शक उसी फैमिली के ऊपर है क्योंकि उनका वह झुठ पकड़ा गया है लेकिन इस बीच इस श्रीलंका से आई शरणार्थी फैमिली ने अपने आसपास एक ऐसा माहौल तैयार कर लिया है कि उनके मोहल्ले में रहने वाले लोग उनसे स्नेह करने लगे है।


यह कहानी है एक ऐसे मासुम परिवार औऱ उसके लोगों कि हैं, जो मजबुरी में अपने देश को छोड़ते है और जिस नई जगह वह आये हैं उस जगह औऱ वह के लोगों को अपना बना लेते है। इस फिल्म की कहानी आपकों हंसायेगी कही- कही रुला भी देगीं मगर बोर तो बिल्कुल भी नही होने देगी। ऐसी फिल्में आपकों बताती है कि एक व्यक्ति के रुप में एक समाज में आपकी क्या भुमिका हो सकती हैं। फ़िल्म आपकों भावनाओं और समर्पण की एकरूपता दिखाती है चाहे फ़िर वह श्रीलंकन हो या फिर भारतीय।


अरविंद साहू (AD) Freelance मनोरंजन एंटरटेनमेंट Content Writer हैं जो विभिन्न अखबारों पत्र पत्रिकाओं वेबसाइट के लिए लिखते है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी सक्रिय है, फिल्मी कलाकारों से फिल्मों की बात करते है। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय माखन लाल चतुर्वेदी के भोपाल कैम्पस के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के छात्र है।




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